निर्भया को याद कर महिलाओँ के लिए सुरक्षित माहौल बनाने का लिया संकल्प

 

पुरुष वर्चस्व की दीवार में सुराख़ करने की माँग 

दिन हो या रात सुरक्षित गाँव, शहर और सड़क की माँग 



पटना, 16 दिसंबर: देश की राजधानी दिल्ली में आज से 9 साल पूर्व हुई निर्भया की घटना ने हर दिल को झझकोर दिया था. इसे लेकर देशव्यापी आक्रोश भी देखा गया. इस आक्रोश के बाद ऐसा लगा था कि शायद महिला हिंसा में कमी आयेगी लेकिन कोविड काल के दौरान महिलाओं के प्रति बढ़ी हिंसा ने एक बार फिर लोगों को चिंता में डाल दिया है. निर्भया कांडा के नौ साल होने पर जिला के दानापुर तथा बिहटा के लगभग दस गांव के 500 से अधिक लोगों ने निर्भया को याद करते हुए महिलाओं एवं लड़कियों के लिए एक सुरक्षित माहौल बनाने पर ज़ोर दिया. इस दौरान इस बात पर चिंता जतायी गयी कि निर्भया की घटना के बाद भी महिलाओं तथा किशोरियों पर हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं. इस दौरान मौजूद महिलाओं, पुरुषों, किशोर व किशोरियों ने कैंडल मार्च निकाला और स्लोगन के माध्यम से अपने अधिकार और सुरक्षा पर अपनी भावनाओं को व्यक्त किया. महिलाओँ के लिए सुरक्षित माहौल बनाने का लिया संकल्प. पुरुष वर्चस्व की दीवार में सुराख़ करने की माँग भी उठी.



इस कार्यक्रम के दौरान संस्था से रजनी ने महिलाओं तथा किशोरियों से संवाद करते हुए कहा कि ऐसी स्थिति बनाया जाना जरूरी है जो महिलाओं की रात या दिन हर समय सुरक्षा सुनिश्चित कर सके. इसके लिए संवदेनशील लोगों को आगे बढ़ने की नितांत आवश्यकता है. महिलाओं का रात में नहीं निकल पाना उन्हें अवसरों से दूर रखता है. समय के साथ रोजगार के नजरिये में बदलाव हुआ है. आज रातों में महिलाएं अस्पताल, पुलिस बल व ऐसी नौकरियों के माध्यम से अपनी सेवा दे रहीं हैं. प्रशासन व सरकार के लोग इस बात को सुनिश्चित करें कि दिन या रात, महिलाएं कभी भी कहीं भी आने जाने में सुरक्षित महसूस कर सकें. 


कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि महिलाएं व किशोरियां आज पढ़ लिख कर रोजगार कर रहीं हैं. शिक्षा प्राप्त करने से लेकर रोजगार करने तक सुबह से लेकर शाम होने तक महज इस बात की चिंता कर रहीं होती है कि वे सुरक्षित किस प्रकार रहें. शाम होने के साथ ही उनकी चिंताएं बढ़ती जाती हैं. यही नहीं शाम और रात होने के साथ घर पहुंचने की स्थिति में परिजनों व गली पड़ोस के सवालों का भी सामना करना पड़ता है. उन्हें इस स्थिति से उबारने की बहुत जरूरत है ताकि वे अपने जीवन में आगे बढ़ सकें और अवसर प्राप्त कर सकें. उन्हें जीवन में अवसरों को प्राप्त करने में ऐसी स्थिति बड़े बाधक हैं. 


रात के समय घर से नहीं निकलना पुरुष वर्चस्व वाले समाज की एक सोच है. यह सोच धीरे धीरे हर जगह फैल गयी है. रातों को निकलना महिलाओं के लिए अपराध या गलत समझा जाता है. लेकिन पुरुषों को भी इस सोच से बाहर निकलने की जरूरत है. शाम के समय महिलाएं घर से निकलें और इस पुरानी पंरपराओं को दरकिनार कर नयी सोच को अपनायें

रिपोर्टर

  • Dr. Rajesh Kumar
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    The Reporter specializes in covering a news beat, produces daily news for Aaple Rajya News

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