बीमारियों से दूर रहने के लिए साबुन से हाथ धोने पर दिया जा रहा बल


15 अक्टूबर को मनाया जाता है ग्लोबल हैण्ड वाशिंग डे

ग्लोबल हैंडवाशिंग डे पर यूनिसेफ व सामाजिक संगठनों ने चलाया अभियान 


पटना, 14 अक्टूबर:  कोविड संक्रमण के दौरान मास्क के इस्तेमाल के साथ हाथों की नियमित साफ सफाई रखने पर भी जागरूकता बढ़ी है. साबनु पानी से 40 सेकेंड तक हाथों को धोना या इनकी उपलब्धता नहीं होने पर सैनिटाइजर के इस्तेमाल के प्रति लोग सचेत नजर आ रहे हैं. हाथों की साफ-सफाई रखने को लेकर राज्य में यूनिसेफ द्वारा भी अभियान चलाया गया है. 


यूनिसेफ की बिहार ईकाई के वॉश विशेषज्ञ प्रभाकर सिन्हा ने बताया कि कोरोना आपदा की वजह से सभी लोग मुश्किल समय से गुज़र रहे हैं. और ऐसे समय में सभी तरह की बीमारियों को कम करने में हैंड हाइजीन का बहुत अधिक योगदान है. हैंड हाइजीन का ख्याल रख कर ही कोविड 19 से इस लड़ाई को जीता जा सकता है. हाथो की स्वच्छता प्रत्येक व्यक्ति की प्राथमिकता होनी चाहिए. उन्होंने कहा इस साल का विषय "सभी के लिए हाथ स्वच्छता" होना चाहिए." 


प्रभाकर सिन्हा ने बताया कि साबुन से हाथ धोने से कई तरह की बीमारियों की रोकथाम हो सकती है. जैसे, हैंडवाशिंग से डायरिया की 30 से 48 प्रतिशत तक रोकथाम की जा सकती है. हैंडवाशिंग से  तीव्र श्वसन संक्रमण को 20 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है. हाथों की नियमित सफाई हैजा, इबोला, शिगेल्लोसिस, सार्स और हेपेटाइटिस-ई जैसे रोगों के संचरण की रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. साथ ही कई प्रकार की बीमारियों को जन्म देने वाले रोगाणुओं से सुरक्षित रखता है. भौगौलिक रूप से विशेषकर उष्णकंटिबंधीय क्षेत्रों में होने वाले रोगों की रोकथाम के लिए हाथों की स्वच्छता जरूरी है. 


हाथ धोने पर जागरूकता के लिए हैंडवॉशिंग डे:

गंदे हाथों की वजह से होने वाले बीमारियों के संचरण के प्रति जागरूकता लाने के लिए 15 अक्टूबर को ग्लोबल हैंडवाशिंग डे यानि वैश्विक हाथ धोने का दिवस के तौर पर मनाया जाता है. इस दिन को बीमारियों को रोकने और जीवन को बचाने के लिए साबुन जैसे सस्ते व प्रभावी तरीका की मदद से हाथ धोने के महत्व के प्रति जागरूकता बढ़ाने और इस दिन की महत्ता को समझने के लिए मनाया जाता है. हाथों की स्वछता को बढ़ावा देना और इससे जुड़ी सुविधाओं की उपलब्धता व इसके विभिन्न पहलुओं को समझने के लिए इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है. इसके पहले श्रेणी में  हाथों की स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए  हैंडवाशिंग सुविधाओं, नियमित जल आपूर्ति, साबुन या अल्कोहल आधारित हैंड्रब  तक पहुंच में सुधार लाना,  दूसरे श्रेणी में हाथ की स्वच्छता पर व्यवहार परिवर्तन व हस्तक्षेपों पर काम करना और अंत में  हाथ की स्वच्छता सेवाओं और व्यवहार परिवर्तन के लिए काम वाली नीति, समन्वय, अधिनियम और वित्तपोषण जैसे घटकों को मजबूत करना है. 


राज्य में खुले में शौच की दर अधिक: 

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ सर्वे के मुताबिक बिहार के 67 प्रतिशत घरों में स्वच्छता संबंधी सुविधाओं का उपयोग नहीं किया जाता है. यानी इन घरों के सदस्य खुले में शौच करते है. 22 प्रतिशत शहरी परिवारों की तुलना में 73 प्रतिशत ग्रामीण घरों के लोग खुले में शौच के लिए जाते हैं. राज्य के राष्ट्रीय वार्षिक ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण 2018-19 के मुताबिक 566 सैंपल गांवों में से 31 खुले में शौच मुक्त थे और 535 ओडीएफ नहीं थे. वहीं 553 सैंपल आंगनवाड़ी में से 31 ओडीएफ थे और 522 ओडीएफ नहीं थे. 555 सैंपल स्कूलों में से 31 ओडीएफ थे और 524 खुले में शौचालय मुक्त नहीं थे. हालांकि, स्वच्छता के बुनियादी ढांचों में हाथों की सफाई के लिए साबुन और पानी की उपलब्धता और एक शौचालय का सामान्य रखरखाव शामिल है. सर्वेक्षण के मुताबिक बिहार में अभी भी खुले में शौच जाने का प्रचलन है और साफ सफाई नहीं रखने से बीमारियों के फैलने की संभावना भी अधिक होती है. 


बिहार के आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 के अनुसार, 2015 से 2019 के बीच डायरिया या पेचिस जैसे जल-जनित रोगों के मामले बढ़ते देखे गये हैं. हालाँकि, 2015-16 में एक्यूट डायरिया के मामले में 5.1 लाख रोगियों की संख्या से घटकर 2018-19 में यह संख्या 3.3 लाख हो गयी. वहीं  2015-16 में पेजिश के 2.8 लाख मामले घटकर साल 2018-19 में 1.7 लाख पर आ गया. तीनों  सर्वेक्षणों से यह संकेत मिलते हैं कि हैंडवाशिंग बीमारियों को रोकने के लिए एक सरल, सस्ती और प्रभावी विधि हैं. अगर हम स्वछता रख हैंडवाशिंग पर ध्यान दें  कई बीमारियों से बचा जा सकता है. 



यूनिसेफ कर रहा हाथों को की सफाई पर जागरूक:


विभिन्न सरकारी विभागों, स्कूलों और स्वास्थ्य देखभाल ईकाईयों में 86 नो टच हैंड वाशिंग यूनिट लगाई गई हैं. हैंडवाशिंग को बढ़ावा देने के लिए, 6.57 लाख साबुन तथा 142 HCF वितरित किए गये हैं. इससे 10 लाख लोगों को लाभ मिला है. ऍफ़एचआईऐ फाउंडेशन इंटरनेट साथी कार्यक्रम के माध्यम से डिजिटल संचार सम्प्रेषण गतिविधियाँ या रिस्क कम्युनिकेशन और कम्युनिटी इंगेजमेंट  हस्तक्षेप से शेखपुरा, गया, नवादा, बांका और मुजफ्फरपुर जिलों के 1200 गांवों के 1.2  लाख परिवार के 5 लाख लोग लाभान्वित हुए. सोशल डिस्टेंसिंग, साबुन के साथ हैंडवाशिंग, मास्क का उपयोग और स्कूलों के विच्छेदन पर विभिन्न जागरूकता उत्पन्न करने वाली गतिविधियाँ की गईं. 


शौचालय के इस्तेमाल पर इंटरनेट साथी से मिली मदद: 


कंचन कुमारी, गया ज़िले की एक इंटरनेट साथी ने कहा, "हम हाथ शौचालय इस्तेमाल करने के बाद धोते थे लेकिन इंटरनेट साथी कार्यक्रम के बाद हमे हाथ धोने के बारे में और जानकारी मिली.  हमे बताया गया की कैसे पांच साल से कम उम्र वाले बच्चों को दस्त की बीमारी हाथ न धोने से हो सकती है.  कोरोना की महामारी के बीच हमे और ध्यान रखना होगा ताकि हम अपना और अपने परिवार का बचाव कर सकें. " कोविड-19 प्रतिक्रिया कार्यक्रम के तहत हैंडवॉशिंग पर जागरूकता पैक व्हाट्सऐप और फेसबुक के माध्यम से समुदाय में साझा किया जाता रहेगा. आगा खान फाउंडेशन) संवेदीकरण और 600 नगरपालिका हितधारकों, 500 आरडब्ल्यूए सदस्यों और 600 स्वच्छता कार्यकर्ताओं के साथ साझेदारी में शहरी पटना प्रतिक्रिया। एकेएफ के साथ साझेदारी में शहरी पटना में 600 नगरपालिका हितधारकों, 500 ग्रामीण कल्याण संगठन (आरडब्ल्यूए) के सदस्यों और 600 स्वच्छता कार्यकर्ताओं का संवेदीकरण किया और उनकी क्षमता को बढ़ाया गया है.   

गया ज़िले की चांदनी देवी जो इंटरनेट साथी की लाभार्थी थी, उन्होंने कहा , "मुझे खुशी है की मैंने हाथ धोने की महत्वता को सीखा।  यह महिलाओं को उनके बच्चों के साथ-साथ परिवार के सदस्यों को भी सूचित करने और उनकी सुरक्षा करने के लिए एक बेहतरीन कार्यक्रम  है. मैं अपने परिवार को तो खाना भी नहीं देती जब तक मैं हाथ नहीं धो लेती।"

रिपोर्टर

  • Swapnil Mhaske
    Swapnil Mhaske

    The Reporter specializes in covering a news beat, produces daily news for Aaple Rajya News

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