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बिना चिकित्सकीय परामर्श के नवजात को ऑक्सीटोसिन देना नुकसानदेह
- by
- Jul 28, 2021
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-स्वास्थ्य विभाग की ओर से संस्थागत प्रसव कराने की दी जा रही है सलाह
-प्रसव कराने के लिए दाई या स्थानीय ग्रामीण चिकित्सकों पर ना रहें निर्भर
लखीसराय, 28 जुलाई-
प्रसव एक प्राकृतिक प्रक्रिया होती है| चिकित्सकीय परामर्श इस प्रक्रिया को सरल बनाने में सहयोग प्रदान करता है लेकिन यदि प्रसव को समय पूर्व प्रेरित करने के लिए ऑक्सीटोसिन जैसे इंजेक्शन का प्रयोग किया जाए तब यह जन्म लेने वाले शिशु के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डाल सकता है| सिविल सर्जन डॉ देवेन्द्र कुमार चौधरी ने बताया कि गांवों में प्रसव कराने वाली दाई एवं स्थानीय ग्रामीण चिकित्सकों की सलाह पर प्रसूति को ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन दिए जाने से जन्म लेने पर शिशु को दम घुटने की गंभीर समस्या हो सकती है| जिसे चिकित्सकीय भाषा में एस्फिक्सिया के नाम से जाना जाता है| एस्फिक्सिया के कारण बच्चे को गंभीर रूप से सांस लेने में तकलीफ़ होती है| इससे नवजात की मृत्यु तक हो सकती है|
एस्फिक्सिया नवजात मृत्यु दर का प्रमुख कारण:
सदर अस्पताल के स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ कुमार अमित ने बताया, एस्फिक्सिया नवजातों में मृत्यु का एक प्रमुख कारण है| राज्य में लगभग 44% नवजातों की मृत्यु एस्फिक्सिया के कारण होती है| ऑक्सीटोसिन का गलत तरीके से इस्तेमाल करने के कारण एस्फिक्सिया होने की संभावना बढ़ जाती है| ऑक्सीटोसिन का इस्तेमाल यूटरस के संकुचन के लिए किया जाता है| खासकर प्रसव के बाद अत्याधिक रक्त स्राव रोकने के लिए ही ऑक्सीटोसिन का इस्तेमाल किया जाना चाहिए| लेकिन समुदाय स्तर पर दाई या कुछ स्थानीय ग्रामीण चिकित्सकों द्वारा प्रसूति को प्रसव दर्द से छुटकारा दिलाने एवं शीघ्र प्रसव कराने के उद्देश्य से इसका इस्तेमाल किया जा रहा है| इसके कारण एस्फिक्सिया के मामलों में निरंतर वृद्धि देखने को मिल रही है| उन्होंने बताया ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन का प्रयोग प्रसव के दौरान करने से पहले विशेषज्ञ चिकित्सकीय सलाह जरूरी है| ऑक्सीटोसिन के दुरुपयोग रोकने से एस्फिक्सिया के मामलों में जरूर कमी आएगी| साथ ही इससे नवजात मृत्यु दर को रोकने में सहयोग मिलेगा|
क्या नहीं करें:
• घर पर प्रसव कभी नहीं करायें
• प्रसव के विषय में दाई या स्थानीय ग्रामीण चिकित्सकों से कोई सलाह नहीं लें
• बिना चिकित्सकीय परामर्श के ऑक्सीटोसिन का इस्तेमाल नहीं करें
• प्रसव में शीघ्रता के लिए चिकित्सक पर दबाव नहीं बनाए
क्या करें:
• संस्थागत प्रसव ही करायें
• नियमित रूप से 4 प्रसव पूर्व जाँच जरूर करायें
• क्षेत्रीय कार्यकर्ता, दाई या स्थानीय ग्रामीण चिकित्सक यदि ऑक्सीटोसिन इस्तेमाल के लिए कहे तब तुरंत चिकित्सक की सलाह लें
इसलिए जरूरी है एस्फिक्सिया से नवजात का बचाव:
विगत कुछ वर्षों में राज्य में शिशु मृत्यु दर एवं 5 साल तक के बच्चों के मृत्यु दर में कमी आयी है| अभी राज्य में 28 दिनों तक के नवजात का मृत्यु दर( नवजात मृत्यु दर) पिछले कुछ सालों से स्थिर है.| इसमें महत्वपूर्ण कमी नहीं आयी है| सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे के अनुसार बिहार में वर्ष 2010 में नवजात मृत्यु दर 31(प्रति 1000 जीवित जन्म) थी, जो वर्ष 2017 में घटकर केवल 28 ही हुयी| आंकड़ों से ज्ञात होता है कि विगत 7 वर्षों में नवजात मृत्यु दर में बेहद कम कमी आयी है| यदि एस्फिक्सिया से होने वाली मौतों में कमी आएगी तब नवजात मृत्यु दर में भी कमी आएगी| इसके लिए ऑक्सीटोसिन इस्तेमाल के प्रति आम जनों की जागरूकता भी जरूरी है|
रिपोर्टर
The Reporter specializes in covering a news beat, produces daily news for Aaple Rajya News
Dr. Rajesh Kumar