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बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक विकास को बाधित करते हैं मिट्टी संचारित कृमि
- राष्ट्रीय कृमि मुक्ति कार्यक्रम के तहत 1 से 19 वर्ष के बच्चों को खिलायी जाती है अल्बेंडाजोल टैबलेट
- कृमि नाशक गोलियों का सामुदायिक स्तर पर एक साथ सेवन जरूरी
मुंगेर, 22 मार्च। बच्चों को कुपोषण सहित अन्य कई प्रकार की परेशानियों का एक कारण उनका मिट्टी संचारित कृमि (एसटीएच) से संक्रमित होना है। जो बच्चों में मल से फैलता है। इसे दूर करने के लिए सन 2015 से राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस कार्यक्रम शुरू किया गया है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार के निर्देशानुसार प्रत्येक वर्ष 10 फरवरी को राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। 10 फरवरी से 10 अगस्त तक अर्धवार्षिक आधार पर बच्चों को कृमि मुक्ति के लिए दवा खिलाई जाती है। इस कार्यक्रम के तहत जिला भर के 1 वर्ष से 19 वर्ष तक के सभी बच्चों को स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से अल्बेंडाजोल 400 मिलीग्राम की निश्चित खुराक कोविड अनुरूप व्यवहारों का पालन करते हुए खिलायी जायेगी। इस अति महत्वपूर्ण कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आशा कार्यकर्त्ता, आंगनबाड़ी सेविका- सहायिका, जीविका दीदियों सहित स्वास्थ्य विभाग के सहयोगी संस्थाएं एवं हितधारी संगठनों से भी अपेक्षित सहयोग लिया जाता है। इसके साथ ही इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आवश्यक प्रचार- प्रसार भी किया जाता है।
शारीरिक एवं मानसिक विकास बाधित करते हैं कृमि -
कृमि संक्रमण के प्रभाव एवं संचरण चक्र पर प्रकाश डालते हुए जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डा. राजेश कुमार रौशन ने बताया कि कृमि ऐसे परजीवी हैं जो मनुष्य के आंत में रहते हैं। आंतों में रहकर ये परजीवी जीवित रहने के लिए मानव शरीर के आवश्यक पोषक तत्वों पर ही निर्भर रहते हैं। जिससे मानव शरीर आवश्यक पोषक तत्वों की कमी का शिकार हो जाता और वे कई अन्य प्रकार की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। खासकर बच्चों, किशोर एवं किशोरियों पर कृमि के कई दुष्प्रभाव पड़ते हैं। जैसे- मानसिक और शारीरिक विकास का बाधित होना, कुपोषण का शिकार होने से शरीर के अंगों का विकास अवरूद्ध होना, खून की कमी होना आदि जो आगे चलकर उनकी उत्पादक क्षमता को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। कृमि का संचरण चक्र संक्रमित बच्चे के खुले में शौच से आरंभ होता है। खुले में शौच करने से कृमि के अंडे मिट्टी में मिल जाते और विकसित होते हैं। अन्य बच्चे जो नंगे पैर चलते हैं या गंदे हाथों से खाना खाते या बिना ढ़के हुए भोजन का सेवन करते हैं ,आदि लार्वा के संपर्क में आकर संक्रमित हो जाते हैं। इसके लक्षणों में दस्त, पेट में दर्द, कमजोरी, उल्टी और भूख का न लगना आदि है। संक्रमित बच्चों में कृमि की मात्रा जितनी अधिक होगी उनमें उतने ही अधिक लक्षण परिलक्षित होते हैं। हल्के संक्रमण वाले बच्चों व किशोरों में आमतौर पर कोई लक्षण नहीं दिखाई पड़ते हैं।
कृमि नाशक गोलियों का सामुदायिक स्तर पर एक साथ सेवन जरूरी -
कृमि नाशक गोलियों अल्बेंडाजोल के सेवन की आवश्यकता पर बल देते हुए जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डा. रौशन ने बताया कृमि नाशक गोलियाँ अल्बेंडाजोल का साल में एक बार सेवन करने से बच्चों के शरीर पर किसी प्रकार के विपरीत परिणाम नहीं आते हैं। इसके सेवन से उनके शरीर में पल रहे कृमि नष्ट हो जाते जिससे उनके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में विकास होता है। उनके स्वास्थ्य और पोषण में सुधार आता है। जिससे उनके शारीरिक विकास के उचित लक्षण दिखाई देने लगते हैं। एनीमिया का शिकार होने से बच पाते हैं। यही नहीं एक साथ इस आयुवर्ग के बच्चों द्वारा कृमि नाशक गोलियों का सेवन किये जाने से सामुदायिक स्तर पर कृमि से किसी अन्य के संक्रमित हो जाने की संभावनाएं कम हो जाती हैं। इसलिए सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष एक साथ इस आयु वर्ग के बच्चों और किशोर एवं किशोरियों को कृमि मुक्ति दिवस कार्यक्रम चलाते हुए अल्बेंडाजोल की निश्चित खुराक खिलायी जाती है।
उन्होंने बताया कि जिन राज्यों में मिट्टी संचारित कृमि (एसटीएच) का संक्रमण 20 प्रतिशत से अधिक होता है वहां कृमि मुक्ति के द्विवार्षिक और शेष जगहों पर वार्षिक कृमि मुक्ति अभियान आयोजित किया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़ों के अनुसार भारत में 1 से 14 वर्ष आयु वर्ग के 241 मिलियन बच्चों में मिट्टी संचारित कृमि संक्रमण का खतरा है।
रिपोर्टर
The Reporter specializes in covering a news beat, produces daily news for Aaple Rajya News
Dr. Rajesh Kumar