कोरोना और मुंबई शहर-दिल्ली की डगर प्रतीक तस्वीर-प्रियंका कुमारी (मॉडल)

       ................मानवेन्द्र कुमार    
देश में कोविड-19 से संक्रमित लोगों की तादाद लगातार बढ़ रही है लेकिन देश के दो महानगर दिल्ली और मुंबई इस स्वास्थ्य संकट से निपटने में रास्ता दिखा सकते हैं जहां कोरोना के प्रसार पर लगाम लगाने की कोशिश काफी हद तक सफल दिखती है. दिल्ली में रोजाना के नए मामलों की तादाद में काफी कमी आई है. जून में रोजाना 3,000 से अधिक मामलों की पुष्टि होती थी लेकिन पिछले सप्ताह नए मामलों की तादाद लगभग 1,000 के आंकड़े तक सिमटी नजर आई. दिल्ली और मुंबई दोनों ही शहरों में संक्रमण के मामलों की दैनिक वृद्धि दर कम होकर एक प्रतिशत के स्तर पर आ गई है.
विशेषज्ञों का कहना है कि संक्रमण के मामलों में कमी की वजह महामारी का प्रसार और नहीं बढऩा और दोनों शहरों में जांच में तेजी लाने की कोशिशें करने के साथ ही क्वारंटीन को लेकर काफी सख्ती दिखाई जा रही है. मुंबई में धारावी जैसी घनी आबादी वाली झुग्गी-झोपडिय़ों वाली बस्तियों में संक्रमितों के संपर्क की पहचान करने के साथ ही सफलतापूर्वक क्वारंटीन को अमलीजामा पहनाना एक सबक है कि किस तरह ऐसे क्षेत्रों में महामारी नियंत्रित करने के लिए आम लोगों की भागीदारी बढ़ाना जरूरी है.  
दोनों शहरों में आशा कार्यकर्ताओं और गैर सरकारी संगठनों की मदद से घर-घर जाकर सर्वे कराया गया ताकि लक्षण वाले मरीजों की पहचान की जा सके और उन्हें क्वारंटीन किया जा सके. ग्रेटर मुंबई नगर निगम के ने कहा, 'जनसंख्या घनत्व और मुंबई का भौगोलिक दायरा  एक बड़ी चुनौती है. हमारे पास 3,500 सामुदायिक स्वास्थ्य स्वयंसेवकों की एक मजबूत टीम है जो साथ काम कर रहे थे और इन्हीं लोगों ने सर्वेक्षण किया. 95 प्रतिशत से नीचे के एसपीओ-2 के स्तर वाले किसी भी व्यक्ति को कोविड केयर सेंटर में ले जाया गया और निगरानी में रखा गया.'
कोई नया कदम उठाए बिना भी दिल्ली में बीमारी तेजी से बढ़ रही थी लेकिन उपायों को और अधिक सख्ती से लागू करके हम संक्रमितों की तादाद नियंत्रित कर सकते हैं. हालांकि देश में दिल्ली और मुंबई दोनों जगहों पर मरने वालों की तादाद सबसे ज्यादा है और इन्हीं महानगरों में काफी बुरा दौर देखा गया जब मरीजों को अस्पताल में बेड पाने के लिए काफी भटकना पड़ा जिससे स्वास्थ्य तंत्र की बदहाली जगजाहिर हुई. विशेषज्ञों का कहना है कि अब जब यह संकट की स्थिति नियंत्रण में आती दिख रही है तब दोनों शहरों को यह समझने के लिए अपने आंकड़ों का आकलन करने की जरूरत है कि कौन से कदम कारगर हुए और कौन से काम नहीं आए. देश को सबक देने की जिम्मदारी दिल्ली और मुंबई पर है कि इन महानगरों ने क्या सही किया और क्या चीजें गलत साबित हुईं.' गंभीर रूप से बीमार मरीजों के इलाज के मामले में इन महानगरों का व्यापक अनुभव है.
मिसाल के तौर पर मुंबई ने एक त्रिआयामी दृष्टिकोण अपनाया. सबसे पहले लोगों के घर-घर जाकर सर्वेक्षणों के माध्यम से शुरुआती स्तर पर लक्षण वाले लोगों की पहचान की गई,  मरीजों के ऑक्सीजन और ग्लूकोज स्तर की सख्त निगरानी की गई. स्टेरॉयड तथा ऐंटीवायरल दवाएं मसलन टोसिलिजुमैब और रेमडेसिविर के शुरुआती इस्तेमाल पर जोर दिया गया. पूरे देश के मुकाबले सबसे पहले मुंबई ने इनमें से कुछ क्लीनिकल प्रबंधन से जुड़े फैसले किए. ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां हमेशा मरीजों की संख्या ज्यादा थी.
संक्रमण के मामलों में स्थिरता देखी जा रही है और अब एक सप्ताह में करीब 8,000 नए मरीजों की पुष्टि हो रही है. जिलों के अस्पतालों में प्रोटोकॉल का प्रसार करना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इससे मरीजों की रिकवरी दर में सुधार होगा. दूसरा क्षेत्र जांच से जुड़ा है. जून के पहले हफ्ते में जब दिल्ली प्रतिदिन औसतन 9,500 जांच करा रही थी  तब पॉजिटिव मामले 37 फीसदी थे. जुलाई के पहले सप्ताह में जांच की तादाद बढ़ाकर 25,000 से अधिक कर दी गई और पॉजिटिव मामले की दर घटकर 9 प्रतिशत हो गई है.' हालांकि विशेषज्ञ बताते हैं कि हाल ही में हुए सीरो सर्वे में पता चला कि 23 फीसदी आबादी वायरस से प्रभावित हुई है और इस लिहाज से संक्रमण के मामलों का पता लगाना काफी कम रहा है. इसका यह भी अर्थ है कि कोविड के कारण होने वाली मौतों की कुल तादाद को भी सही ढंग से कवर नहीं किया गया है.
दिल्ली में जून के बजाय जुलाई में संक्रमण के ज्यादा मामले सामने आने चाहिए थे. शहर ने इस महामारी को लेकर कोई व्यापक पूर्वानुमान नहीं किया था और न ही इसके लिए कोई पर्याप्त रूप से तैयारी की गई थी.'
थायरोकेयर के पिन कोड डेटा के मुताबिक, जनसंख्या में ऐंटीबॉडी की मौजूदगी दिल्ली में 34 फीसदी और मुंबई में 27 प्रतिशत के करीब है. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक ऐंटीबॉडी का स्तर 70 फीसदी तक नहीं पहुंचता तब तक हम वायरस से सुरक्षित नहीं होंगे.
30-40 प्रतिशत की एक सीरोप्रेवलेंस काफी बड़ा है कि इसे संक्रमण को नियंत्रित करने में सफलता पाने के तौर पर भी कहा जा सकता है. हॉटस्पॉट केंद्रों में संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए सख्त कदम उठाने से दिल्ली में मदद मिल सकती थी.' हालांकि कोविड के संदर्भ में सामुदायिक प्रतिरक्षा बनने का विषय अब भी शोध का विषय है और इसके लिए संक्रमण का लक्ष्य 40 से 70 फीसदी के बीच है. मोटे तौर पर लगभग 15 प्रतिशत भारतीय आबादी में एंटीबॉडी है. महानगरों में यह 40 फीसदी है जबकि छोटे शहरों में 5 प्रतिशत के करीब है.' ऐंटीबॉडी और आरटी पीसीआर टेस्ट एक तरफ कर दें तो दिल्ली और मुंबई में ऐंटीजन टेस्ट किट की क्षमता काफी बढ़ी है, हालांकि इसमें कई मामलों में सटीक नतीजे नहीं मिले हैं. ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि मुंबई में आधे से ज्यादा जिन लोगों का ऐंटीजन टेस्ट निगेटिव रहा उनका आरटी पीसीआर टेस्ट पॉजिटिव होगा। दिल्ली में 15 फीसदी लक्षण वाले मरीजों में ऐंटीजन टेस्ट गलत तरीके से निगेटिव दिखा है. कोरोना अब देश के अंदरूनी भागों में फैल रहा है जहां राष्ट्रीय और वित्तीय राजधानियों के मुकाबले पर्याप्त संसाधन नहीं हैं. ऐसे में सरकार और लोगों के लिए राह अब भी आसान नहीं है. बहरहाल दिल्ली और मुंबई में काफी हद तक कोविड-19 कंट्रोल किया गया है जिससे अब और कारगर तरीके से लागू किया गया है. आने वाले दिनों में इसका असर और दिखेगा. मुंबई खासकर कोरोना से निबट लेगा बस थोड़ा इंतजार कीजिए.

 

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